एक बार नानाजी के पास बैठी थी| बच्चे हो गये थे-यानी अब दुनियादारी और मर्म की बात समझने के दिन आ गये थे| बोले बेटा, ‘‘बात असल की या है ऊपर भगवान नीचै पीसो!’’ यानी दुनिया का भगवान पैसा ही है|
कुछ अटपटा लगा कि बड़े लोगों को पैसे का कुछ ज्यादा ही प्रेम है| उन्होंने एक साखी कही-
परसियो परसो परसराम,
माया तेरा तीन नाम|
परसियो से परसराम होते ही सब परसरामजी राम-राम, परसिया हँसता और अपनी तिजूरी को जाकर कहता, ‘‘तिजूरी बाई शुभकरणजी तन्नै राम-राम कुहायो है|’’ यानी सारी राम-राम तिजूरी बाई को पहुंचा देता|
इस सत्य को जो समझ लेता-सुख ही पाता है| खास कर जवान बच्चे, जिनका सारा जीवन सामने पड़ा है|
ऐसी ही एक सत्य कहानी है लड़की की| वकालत पढ़ कर नौकरी कर रही थी| मॉं-बाप संपन्न थे| वह शादी नहीं कर रही थी| एक बार जब मां बीमार पड़ी उसे बेटी की चिन्ता, चैन नहीं लेने देती| उसने बेटी से कहा कि तुम जिससे शादी करना चाहती हो कर लो जिससे मैं सुख से चली जाऊंगी!
बेटी ने सीधा-साधा यक्ष प्रश्न पूछा, ‘‘आप मुझे शादी में क्या देना चाहेंगे?’’ पिता ने सोच समझ कर कहा, ‘‘छ: लाख रुपये’’|
आज से ३५-४० वर्ष पहले यह एक बहुत अच्छी रकम थी|
एक सभ्रान्त घर का लड़का उसी फर्म में वकील था| उन्होंने शादी करने का निश्चय किया, पर अपनी शर्त्त पर|
उन्होंने रजिस्ट्री शादी की| विवाह के लिये एक साड़ी बनवाई| सारे परिवार ने, लड़के-लड़की के मां-बाप, बहन-भाई ने जी भर के आशीर्वाद-प्यार दिया|
ससुरजी जब गहना देने लगे-लड़की ने कहा, ‘‘बाबूजी, आपके ऊपर अभी बहुत उत्तरदायित्व है| मैं गहना पहनती नहीं, मुझे सिर्फ आप लोगों का प्यार और आशीर्वाद चाहिये|’’ उनके हृदय से सचमुच आशीर्वाद निकला होगा|
कलकत्ते के एक क्लब में करीबी रिश्तेदारों और सहकर्मियों को चाय पार्टी दी| करीब २००० रु. लगे| एक अच्छा-सा फ्लैट भाड़े लिया, जमा दिये ५०,००० रु.| दस हजार में गाड़ी आई, कुछ फर्नीचर, रसोई के बर्त्तन| करीब लाख रु. खर्च हुए होंगे|
बाकी के पांच लाख रुपये सोच समझ कर जमा कराये| आज वे इन्वेस्टमेंट बड़े हो गये|
न ससुर पर भार न मॉं बाप पर!
आत्मनेव आत्मन: तुष्ट दंपत्ति!
नई पीढ़ी के लिये एक उदाहरण|
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