आता है तूफां तो आने दे, कश्ती का खुदा खुद हाफिज है,
मुमकिन है कि बहती मौजों में खुद बह कर साहिल आ जाये॥
लहलहाती खेती पर कब ओले पड़ जायें, कब तूफान में पेड़ों की शाखें गिर जायें, कोई नहीं जानता|
एक ऐसे ही संपन्न महाजन थे| पॉंच बच्चों की गृहस्थी हँसी खुशी चल रही थी कि अचानक पत्नी चल बसी |
पैसा कमाने में आदमी कितना ही धुरंधर क्यों न हो, बच्चों को, घर को संभालना उनको उस दिन लगा कि कितना मुश्किल है|
किसी की पढ़ाई की समस्या, तो कोई बच्चा बीमार, उधर नौकर महाराज लोगों की धॉंधली!
एक गृहिणी की सख्त जरूरत थी पर कौन होगी वह? बच्चों को तकलीफ तो नहीं देगी-वह स्वयं इतनी समस्याओं में कैसे निभा के निकलेगी|
एक नहीं दस यक्ष प्रश्न सामने खड़े थे|
शायद बच्चों के भाग्य ने जोर लगाया और एक सुघड़ शालीन सुंदर, उच्चकुल की लड़की मिली| करीब बीस वर्ष की हो गई थी-समझदार!
परिस्थिति कठिन थी-उसे आँख खोल कर ही ऐसी जिन्दगी में पांव धरना था| उसने यह स्वीकार कर लिया| ‘‘कैसे कटे कठिन बाट चल के आजमाना|’’ उसने इतना प्यार दिया कि बच्चे नई मॉं से एकदम लिपट गये| चार लड़के दो लड़कियां| परिवारवालों ने और खास कर सेठजी ने सुख की सांस ली|
अपने बच्चे नहीं हुए तब अपनी मां कुछ नहीं कहती- कि अपना भी एक बच्चा हो पर, बड़ी मॉं कहती ‘‘ना बेटी, एक तो अपना होना ही चाहिये, बड़ी होकर बहू बेटियां शायद ताना मार दें कि आपको मां होने की पीड़ा का क्या पता|’’
खैर विवाह के आठ वर्ष बाद, एक पुत्र की मां बनी| अब छह से सात बच्चे हो गये|
बड़े लड़के की शादी करके सेठजी ने काम संभालने आसाम भेज दिया|
धीरे-धीरे दोनों लड़कियों और दो लड़कों के विवाह हुए|
इतने में सेठजी की मृत्यु हो गई| फिर से तकलीफ| बीचवाले लड़के के मन में बेइमानी आ गई| उसने सिर्फ मॉं का ही नहीं अपने भाइयों के हिस्से पर भी अपना अधिकार जमा लिया| थोड़ा बहुत जो घर में था उससे काम चलता रहा|
बेटियां बिल्कुल अपनी मां से चिपकी रहीं| भाइयों का साथ नहीं दिया| मंझला बेटा यही कहता रहा कि मैं भाइयों को संभाल लूंगा- पर उनको भी निकाल दिया| मां के लिये कहता था कि मेरे बाप ने इनसे शादी थोड़े ही की थी-ऐसे ही रखा था|
सारे अपमान सहते हुए एक छोटे बेटे को लेकर पुश्तैनी घर छोड़ कर जाना पड़ा| फिर भी उस देवी के चेहरे पर गुस्सा नहीं था|
प्रभु की दया से छोटे बेटे ने छोटासा काम शुरू किया और मेहनत और मां के आशीर्वाद से खूब पैसा कमा लिया| बहू भी भगवान की कृपा से सास जैसी आ गई| उधर मझले लड़के का काम बिगड़ता गया और मॉं की शरण में आया|
आखिर में सत्य की ही जीत होती है| आज ‘‘विमाता फिर से माता हो गई’’!
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